कोई बात हुई थी कुछ दिनों पहले
किसी से मुलाक़ात हुई थी कुछ दिनों पहले
एक हम दम सा
एक हमसफ़र सा
कुछ जाना पहचाना सा
बात करके हमें लगा
एक अपनापन सा
कुछ दूर हम साथ चले थे उस दिन
सोचता हू क्यों न ठहर गया वो दिन
क्यों न ठहर गया वह पल
वह पल जब हम साथ थे
वह पल जिसमे हम दोनों के जज़्बात थे
कुछ तुम कह सके थे हमसे
कुछ हम कह सके थे तुमसे
ना लौट के आएगा वह समां
वह समां जिसमे उनींदा था आसमा
बातो ही बातो में दिल खो गया कुछ दिनों पहले
फिर एक दिन अचानक हुआ कुछ
सिलसिला वो ख़त्म हुआ कुछ दिनों पहले
कोई कैसे समझाए उन्हें
ऐ रूठे दिल
जो हमसे शायद नाराज़ होके बैठा है ,
कोई कैसे बताये उन्हें की
जख्म यहाँ भी उतना ही गहरा है
दर्द यहाँ भी मुकम्मल है ...
नादानी न थी हमारी पर रुसवा हुए दोनों ,
गुस्ताखी न थी हमारी पर जुदा हुए दोनों .
दिल कहता है कि क्यों माने यह सारे बंधन
क्यों करे परवाह हम किसी की
यह दस्तूर ये रिवाज़
क्या जरुरत है इनकी
अब हमारे हाथ में कुछ भी नहीं ,
हम चाह कर भी उन्हें भुला नहीं पाते,
वो अब नहीं है हमारे ये खुद को समझा नहीं पाते ,
अब बस चलते चले जाते है उन तनहा राहो पे ,
इस झूठी तसल्ली से कि अगले ही मोड़ पे वो हमारे रु -ब -रु होंगे ...